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कभी-कभी रात में. (जब नींद सताती तो ) भगवान (महावीर) (आवास से ) बाहर निकलकर कुछ समय तक बाहर इधर-उधर घूमकर फिर सक्रिय होकर पूर्णत: जागते हुए (ध्यान में ) बैठ जाते थे।
उनके लिए (महावीर के लिए) (उन) स्थानों में नाना प्रकार के भयानक कष्ट भी (वर्तमान) थे। (वहाँ) जो भी चलने-फिरने वाले जीव (थे) और (वहाँ) (जो) (भी) पंखयुक्त (जीवे थे) (वे) (वहाँ) (उन पर) उपद्रव करते थे।
(महावीर ने इस लोक सम्बन्धी और परलोक सम्बन्धी (अलौकिक ) नाना प्रकार के भयानक (कष्टों) को (समतापूर्वक सहन किया) । (वे) नाना प्रकार रुचिकर और अरुचिकर गन्धों में तथा शब्दों में ( राग-द्वेष- रहित रहे) ।
अहिंसक (और) बहुत न बोलनेवाले (महावीर) ने अनेक प्रकार के कष्टों को (शान्ति से) झेला (और) (उनमें ) ( वे) सदा समतायुक्त ( रहे ) | ( विभिन्न परिस्थितियों में) हर्ष (और) शोक पर विजय प्राप्त करके (वे) गमन करते रहे ।
लाढ़ देश में रहनेवाले लोगों ने उनके (महावीर के लिए बहुत कष्ट (पैदा किए) (और) (उनको) हैरान किया। (लाढ़ देश के) निवासी रूखे (थे), उसी तरह (उनके द्वारा) पकाया हुआ भोजन (भी रूखा होता था)। कुत्ते (कूकरे) वहाँ पर (महावीर को ) सन्ताप देते थे (और) (उन पर टूट पड़ते थे ।
(वहाँ पर) कुछ ही लोग (ऐसे थे) (जो) काटते हुए कुत्तों को (और) हैरान करनेवाले (मनुष्यों) को दूर हटाते थे। (किन्तु बहुत लोग ) छु-छु की आवाज करते थे (और) कुत्तों को बुला लेते थे, (फिर उनको ) महावीर के (पीछे) (लगा देते थे), जिससे (वे ) थक जाएँ (और वहाँ से चले जाएँ) ।
(कुछ लोगों द्वारा) वहाँ (महावीर पर) लाठी से अथवा मुक्के से अथवा चाकू, तलवार, भाला आदि से अथवा ईंट, पत्थर आदि के टुकड़े से, (अथवा ) ठीकरे से पहले प्रहार किया गया (होता था) (बाद में ) ( वे ही कुछ लोग ) आओ ! देखो ! (कहकर ) बहुतों को पुकारते थे।
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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