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ये चेतनवान हैं, उन्होंने देखा । इस प्रकार वे महावीर जानकर (और) समझकर (प्राणियों की हिंसा का ) परित्याग करके विहार करते थे।
मुनि (महावीर) खाने-पीने की मात्रा को समझनेवाले (थे), (भोजन के) रसों में लालायित नहीं होते) (थे)। (वे) (भोजन- सम्बन्धी) निश्चय नहीं (करते थे)। (आँख में कुछ गिरने पर) ( वे) आँख को भी नहीं पोंछकर ( रहते थे) अर्थात् नहीं पोंछते थे और (वे) शरीर को भी खुजलाते नहीं (थे) ।
मार्ग को देखने वाले (महावीर) तिरछे (दाएँ-बाएँ) देखकर नहीं ( चलते थे), पीछे की ओर देखकर नहीं ( चलते थे), (किसी के द्वारा ) संबोधित किए गए होने पर (वे) उत्तर देने वाले नहीं (होते थे) । ( इस तरह से) (वे) सावधानी बरतते हुए गमन करते थे ।
(महावीर का ) कभी शून्य घरों में, सभा भवनों में, दुकानों में रहना (होता था)। अथवा (उनका ) कभी (लुहार, सुनार, कुम्हार आदि के) कर्म - स्थानों में (और) घास - समूह में (छान के नीचे) ठहरना (होता था) ।
(महावीर का) कभी मुसाफिरखाने में, (कभी) बगीचे में (बने हुए) स्थान में (तथा) (कभी) नगर में भी रहना (होता था)। तथा (उनका ) कभी मसाण में, (कभी) सूने घर में (और) (कभी) पेड़ के नीचे के भाग में भी रहना (होता 'था)।
इन (उपर्युक्त) स्थानों में मुनि (महावीर) (चल रहे ) तेरहवें वर्ष में (साढ़े बारह वर्षपन्द्रह दिनों में) समता-युक्त मन वाले रहे। (वे) रात-दिन ही (संयम में) सावधानी बरतते हुए अप्रमाद-युक्त (और) एकाग्र (अवस्था) में ध्यान करते थे।
भगवान (महावीर) आनन्द के लिए कभी भी नींद का उपभोग नहीं करते थे । और (नींद आती तो ) ठीक उसी समय अपने को खड़ा करके जगा लेते थे । (वे) (वास्तव में) (नींद की) इच्छारहित (होकर) बिल्कुल - थोड़ा सा सोनेवाले. (थे)।
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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