________________
29.
धावदि
गिरिणदिसोदं
व
आउगं
(37137) 1/1 सव्वजीवलोगम्मि [ ( सव्व) स- (जीव ) - (लोग) 7 / 1]
सुकुमालदा
(सुकुमालदा ) 1/1
वि
अव्यय
(हाय) व 3 / 1 सक
(लोग) 7/1
[ ( पुव्वण्ह) - (छाही ) 1/1]
अव्यय
यदि
लोगे
पुव्वछाही
30.
हिमणिचओ
&
वि
गिहसयणा
भंडाणि
M
अधुवाणि
जसकित्ती
कल
अणिच्चा
लो संज्झब्भरागो
व्व
(धाव) व 3 / 1 सक
[(गिरि) - (दि) - (सोद - सोअ) 1 / 1]
अव्यय
Jain Education International
[(हिम)-(णिचअ) 1/1]
अव्यय
अव्यय
[(गिह) + (सयण) + (आसण) + (भंडाणि) ] [(गिह) - (सयण) - (आसण ) - ( भंड) 1 / 2]
(हो) व 3/2 अक
(अधुव) 1/2 वि
[(जस) - (कित्ति) 1 / 1]
अव्यय
( अणिच्च, स्त्री अणिच्चा ) 1 / 1
(लोअ) 7/1
]
[(संज्झ ) + (अब्भ) + (रागो ) [(संज्झ ) - (अब्भ) - (राग) 1 / 1 ]
अव्यय
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
= दौड़ती है
=
= पहाड़ी नदी के प्रवाह
= की तरह
=
= आयु
= सर्व जीवलोक में
= सुकुमारता
= भी
= कम होती है
= लोक में
=
=
=
पूर्वार्ध की छाया
निश्चय ही
For Personal & Private Use Only
बर्फ के समूह
= भी
= की तरह
= घर, शय्या,
आसन, भांड
- होते हैं
=
= अध्रुव
= यश और कीर्ति
= भी
= अनित्य
= लोक में
= संध्या के आकाश की
लालिमा
की तरह
171
www.jainelibrary.org