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________________ . 31. रायंगणम्मि परिसंठियस्स जह कुंजरस्स माहप्पं । विझसिहरम्मि न तहा ठाणेसु गुणा विसर्टति॥ .. 32. ठाणं न मुयइ धीरो ठक्कुरसंघस्स दुट्ठवग्गस्स। ठंतं पि देइ जुझं ठाणे ठाणे जसं लहइ॥ 33. जइ नत्थि गुणा ता किं कुलेण गुणिणो कुलेण न हु कज्जं। कुलमकलंकं गुणवज्जियाण गरुयं चिय कलंकं॥ 34. गुणहीणा जे पुरिसा कुलेण गव्वं वहंति ते मूढा। वंसुप्पन्नो वि धणू गुणरहिए नत्थि टंकारो॥ 35. जम्मंतरं न गरुयं गरुयं पुरिसस्स गुणगणारुहणं। मुत्ताहलं हि गरुयं न हु गरुयं सिप्पिसंपुडयं॥ 36. खरफरुसं सिप्पिउडं रयणं तं होइ जं अणग्धेयं। जाईइ किं व किज्जइ गुणेहि दोसा फुसिज्जंति॥ 37. जं जाणइ भणइ जणो गुणाण विहवाण अंतरं गरुयं। लब्भइ गुणेहि विहवो विहवेहि गुणा न घेप्पंति॥ 38. पासपरिसंठिओ वि हु गुणहीणे किं करेइ गुणवंतो। जायंधयस्स दीवो हत्थकओ निष्फलो च्चेय॥ 10 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002692
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages192
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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