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अखंडिअ
= नहीं मिटाई गई
च्चिअ..
विहवे
(अखंडिअ) 1/1 वि आगे संयुक्त अक्षर (च्चिअ) के आने से दीर्घ स्वर हस्व स्वर हुआ है। अव्यय (विहव) 7/1 (अच्चुण्णअ) 2/2 वि अव्यय (लह) संकृ (सेल) 2/1
अच्चुण्णए
= भी . . = सम्पत्ति में = बहुत ऊँची को = आश्चर्य = प्राप्त करके = पर्वत पर
लहिऊण सेलं
अव्यय
= भी
(समारुह) संकृ
= चढ़कर
अव्यय
-क्या
समारुहिऊण' किंव गअणस्स आरूढं
= गगन पर
(गअण) 611 (आरूढ) 1/1
= चढ़ना
1. 2.
गति अर्थ के योग में द्वितीया विभक्ति होती है। कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134)
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग-2
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