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13. संसेविऊण दोसे
अप्पा
= खूब भोग करके = दोषों को = आत्मा = समर्थ होती है = गुणों को अवस्थित = करने के लिए
तीरइ
गुण-ट्रिओ काउं णिव्वडिअ
(सं-सेव) संकृ (दोस) 2/2 (अप्प) 1/1 (तीर) व 3/1 अक [(गुण)-(ट्ठिअ) भूकृ 1/1 अनि] (काउं) हेकृ अनि [(णिव्वडिअ) वि- (गुण) 6/2] अव्यय (दोस) 7/2 (मइ) 1/1 अव्यय (संठा) व 3/1 अक
गुणाण
= सिद्ध होने पर, गुणों के
पुणो
= किन्तु
दोसेसु
= दोषों में = मति
मई
.
- नहीं
संठाइ
= रहती
14.
जह
अव्यय
जह
अव्यय
णग्छति
[(ण) + (अग्घंति)] (ण) अव्यय अग्घति' (अग्घ) व 3/2 अक (गुण) 1/2
शोभायमान होंगे
E
अव्यय
# न
अव्यय
(दोस) 1/2
अव्यय
र
संपइ
अव्यय
= इस समय __ = फलेंगे
फलंति
(फल) व 3/2 अक
1.
कभी-कभी वर्तमानकाल तात्कालिक भविष्यत् काल का बोध कराता है।
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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