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38.
और चतवर्ण के लोगों की आज्ञा लेकर राम निकले तथा सीता ने भी ससुर को अत्यन्त आदर के साथ प्रणाम किया (करती है)।
39. सभी सासुओं के चरणों में वन्दन करके तथा अपनी सखियों एवं
(अन्य) जनों की अनुमति लेकर सीता यहाँ से निकली।
40. जाने के लिए उद्यत राम को देखकर लक्ष्मण रुष्ट हुआ (और सोचा
कि) पिता के द्वारा बहुत अपयश वाला ऐसा कार्य क्यों चाहा गया?
41. (यहाँ) इस जगत में राजाओं के लिए राज्य परिपाटी से उत्पन्न होता
है, (किन्तु) अदूरदर्शी पिता के द्वारा (यह कार्य) विपरीत ही रचा गया है।
42. जिसका चित्त ही लोभ से रहित है मुनिवर के समान धैर्यशाली महान
राम के गुणों के अन्त को कौन पाता है।
43.
अथवा राज्य के भार को धारण करने वाले पृथ्वीपति राम को कुलपरम्परा से प्राप्त आसन पर बैठाता हूँ। (और) आज भरत का सब कुछ नाश करता हूँ।
44.
अथवा आज मेरे ऐसे गम्भीर विचार (करने) से क्या होता है (होगा)? फिर सत्य को (तो) सिर्फ पिता और बड़े भाई ही जानते हैं।
45. क्रोध को शान्त करके तथा अपेक्षाकृत अधिक विनयसहित पिता को
प्रणाम करके दृढ़चित्त लक्ष्मण अपनी माता को पूछता है।
46.
भृत्यों के साथ बातचीत करके और वज्रावर्त धनुष को लेकर अत्यन्त प्रेमयुक्त व लीन राम के पास (गया)।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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