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22. पैरों की अँगुली से भूमि को खोदती हुई कैकेयी कहती है, हे स्वामी!
____ मेरे पुत्र को यह समस्त राज्य दे दो।।
23. तब दशरथ ने कहा हे सुन्दरी! मेरे द्वारा तुम्हारे पुत्र के लिए समस्त
राज्य दे दिया गया है। तुम (इसे) ग्रहण करो, देर मत करो।
24.
तब दशरथ के द्वारा लक्ष्मण के साथ राम शीघ्र (बुलाए गए)। वृषभ के समान गतिवाले (राम) बाहर से आए और (उनके द्वारा) प्रणाम किया गया।
25. हे वत्स! महासंग्राम में कैकेयी के द्वारा मेरा सारथिपन किया गया।
तुष्ट होने के कारण (मेरे द्वारा) सभी राजाओं के समक्ष (एक) वर दिया गया।
26.
अब कैकेयी के द्वारा पुत्र के लिए यह सारा राज्य माँगा गया है। हे वत्स! (मैं) क्या करूँ (करता हूँ) मैं (तो) चिन्तारूपी समुद्र में डूब गया हूँ।
27.
भरत दीक्षा ग्रहण कर रहा है। उसके वियोग में कैकेयी मर रही है और निश्चयपूर्वक ही मैं भी संसार में मिथ्याभाषी होऊँगा।
28.
इस पर राम कहते हैं हे तात! आप स्वयं का वचन रखें। लोक में आपकी अकीर्ति (हो) (तो) मेरे लिए कभी भी सुख का कारण नहीं है।
29.
हे प्रभु! प्रिय पुत्र के द्वारा हृदय में सदैव (ऐसा) सोचा जाना चाहिए जिससे पिता एक मुहर्त को भी कभी शोक प्राप्त न करें।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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