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19. (खल) (अपने पास) होती हुई (वस्तु) को नहीं देते हैं, देते हुए
(दूसरों) को रोकते हैं, दी गई (वस्तु) को भी छीन लेते हैं। बिना किसी कारण वैर करने वाले खलों का मार्ग ही अनोखा है।
20. जिन (विन्ध्य-पर्वत शृंखलाओं) के द्वारा अनार्य ऊँचे (प्रतिष्ठित) किए
गए हैं, जिनके प्रसाद से (उनका) प्रताप बाहर फैलाया गया है, (आश्चर्य है) (वे अनार्य) ही विन्ध्य-पर्वत को जलाते हैं। खलों का मार्ग ही अनोखा है।
21. (जिस प्रकार) शुष्क (घास) से मिश्रित ताजे वृक्ष भी दावानल के
द्वारा जला दिए जाते हैं, (उसी प्रकार) दुर्जन का साथ प्राप्त होने पर सज्जन भी सुख नहीं पाता है।
22. (मनुष्यों से) मिले हुए बहरे और अन्धे धन्य हैं, (वे) ही दो
(व्यक्ति) (वास्तव में) मनुष्य लोक में जीते हैं, (क्योंकि) (वे) दुष्ट के वचन को नहीं सुनते हैं (और) दुष्ट के वैभव को नहीं देखते हैं।
23.
केवल एक ही सूर्य और दिन (की मित्रता) का निर्वाह प्रशंसित किया जाता है, जिनमें से प्रत्येक (किसी) के द्वारा आजन्म विरह ही नहीं देखा गया।
24.
सूर्य और दिन दोनों की (आपस में) की हुई अखण्डित (मित्रता) शोभती है। दिन के बिना सूर्य नहीं (होता है) (तथा) दिन भी निश्चय ही सूर्य के अभाव में नहीं (होता है)।
25. वह मित्र बनाया जाना चाहिए, जो निश्चय ही (किसी भी) स्थान पर
(तथा) (किसी भी) समय में विपत्ति (पड़ने) पर भीत पर चित्रित पुतले की तरह विमुख नहीं रहता है।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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