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6.
दुर्जन मनुष्य के द्वारा मलिन किया जाते हुए भी उज्ज्वल स्वभावी सज्जन और भी अधिक निर्मल हो जाता है जैसे क्षार के द्वारा (मलिन किया जाता हुआ) दर्पण (और भी अधिक निर्मल हो जाता
सज्जन क्रोध नहीं करता है, यदि (वह) क्रोध भी करता है, (तो) अनिष्ट नहीं सोचता है, यदि (वह अनिष्ट) सोचता है, (तो) (अनिष्ट) नहीं बोलता है, यदि (वह अनिष्ट) बोलता है, (तो) लज्जा-युक्त होता है।
8.
(सच है कि) मिले हुए (सज्जन व्यक्ति) (हमारे) दुःख को हरते हैं, बोलते हुए (वे) (हमको) सभी सुख देते हैं, विधि द्वारा यह शुभ (कार्य) किया गया है कि जगत में सज्जन (उसके द्वारा) बनाए गए हैं।
(सज्जन पुरुष) दूसरे का उपहास नहीं करते हैं, (वे) निज की प्रशंसा नहीं करते हैं, (वे) सैंकड़ों प्रिय (बातें) बोलते हैं, यह सज्जन का स्वभाव है। उन (सज्जन) पुरुषों को (बार-बार) नमस्कार।
10. (दूसरे के द्वारा अपना) प्रिय (भला) किया जाने पर तथा (दूसरे के
द्वारा अपना) प्रिय (भला) नहीं किया जाने पर भी जगत में (दूसरे का) प्रिय (भला) करते हुए (लोग) देखे जाते हैं, किन्तु (दूसरे के द्वारा अपना) अप्रिय (बुरा) किया जाने पर भी (जो) (दूसरे का) प्रिय (भला) करते हैं, वे सज्जन दुर्लभ हैं।
11.
हे सज्जन! (तुम) कठोर नहीं बोलते हो, (यदि दूसरे के द्वारा कठोर) बोला गया (है), (तो) भी (तुम) हँसते हो, हँसकर प्रिय (वचनों को) बोलते हो। तुम्हारा स्वभाव किसके समान है? (हम) नहीं जानते हैं।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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