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________________ 12. नेच्छसि परावयारं परोवयारं च निच्चमावहसि । अवराहेहि न कुप्पसि सुयण नमो तुह सहावस्स ॥ 13. 14. 15. 16. 17. 18. 34 दोहिं चिय पज्जत्तं बहुएहि वि किं गुणेहि सुयणस्स । विज्जुप्फुरियं रोसो मित्ती पाहाणारेह व्व ॥ दीणं अब्भुद्धरिउं पत्ते सरणागए पियं काउं । अवरद्धेसु वि खमिउं सुयणो च्चिय नवरि जाणेइ ॥ बे पुरिसा धरइ धरा अहवा दोहिं पि धारिया धरणी । उवयारे जस्स मई उवयरियं जो न पम्हुसइ ॥ सेला चलति पलए मज्जायं सायरा वि मेल्लंति । सुयणा तहिं पि काले पडिवन्नं नेय सिढिलंति ॥ चंदणतरु व्व सुयणा फलरहिया जइ वि निम्मिया विहिणा । तह वि कुणंति परत्थं निययसरीरेण लोयस्स ॥ गुणिण गुणेहि विवेहि विहविणो होंतु गव्विया नाम । दोसेहि नवरि गव्वो खलाण मग्गो च्चिय अउव्वो । Jain Education International For Private & Personal Use Only प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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