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12. नेच्छसि परावयारं परोवयारं च निच्चमावहसि । अवराहेहि न कुप्पसि सुयण नमो तुह सहावस्स ॥
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दोहिं चिय पज्जत्तं बहुएहि वि किं गुणेहि सुयणस्स । विज्जुप्फुरियं रोसो मित्ती पाहाणारेह व्व ॥
दीणं अब्भुद्धरिउं पत्ते सरणागए पियं काउं । अवरद्धेसु वि खमिउं सुयणो च्चिय नवरि जाणेइ ॥
बे पुरिसा धरइ धरा अहवा दोहिं पि धारिया धरणी । उवयारे जस्स मई उवयरियं जो न पम्हुसइ ॥
सेला चलति पलए मज्जायं सायरा वि मेल्लंति । सुयणा तहिं पि काले पडिवन्नं नेय सिढिलंति ॥
चंदणतरु व्व सुयणा फलरहिया जइ वि निम्मिया विहिणा । तह वि कुणंति परत्थं निययसरीरेण लोयस्स ॥
गुणिण गुणेहि विवेहि विहविणो होंतु गव्विया नाम । दोसेहि नवरि गव्वो खलाण मग्गो च्चिय अउव्वो ।
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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