SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जहा अव्यय एयाणं बड़े निश्चय से इनके विवाद को समाप्त करके विवायं भंजिऊण एगो (एअ) 6/2 स (विवाय) 2/1 (भंज) संकृ (एग) 1/1 वि (वर) 1/1 (पमाणीकायव्व) विधिकृ 1/1 अनि (मंति) 1/2 एक वरो वर प्रमाणित किया जाना चाहिए मंत्रियों ने अव्यय भी पमाणीकायव्वो मंतिणो वि सव्वे परोप्परं वियारं कुणंति सब आपस में (सव्व) 1/2 स (परोप्पर) 2/1 क्रिवि (वियार) 2/1 (कुण) व 3/2 सक विचार करते हैं (किया) नहीं अव्यय पुण फिर केणावि किसी के द्वारा, भी विवाओ विवाद भज्जइ जओ आसन्ने अव्यय [(केण)+ (अवि)] केण (क) 3/1 स, अवि (अ) (विवाअ) 1/1 (भज्जइ) व कर्म 3/1 सक अनि अव्यय (आसन्न) 7/1 वि [(रण)-(रंग) 7/1] (मूढ) 7/1 रणरंगे मले सुलझाता है (सुलझा) क्योंकि समीपस्थ युद्ध में कर्त्तव्य की सूझ से हीन व्यक्ति में परामर्श में उसी प्रकार अकाल में मंते तहेव दुभिक्खे जस्स (मंत) 7/1 अव्यय (दुब्भिक्ख) 7/1 (ज) 6/1 स (मुह) 1/1 (जो+इज्ज) व कर्म 3/1 सक जिसका मुँह देखा जाता है जोइज्जइ प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 313 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy