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________________ सो पुरिसो महिले विरलो 6. तया एगेण मंतिणा भणियं जइ मन्नह ता विवायं भज्जेमि तेहिं जंपियं जो रायहंसव्व गुणदोसपरिक्खं काऊण पक्खवायरहिओ वायं भंज तस्स वयणं को न मन्नइ तओ तेण 314 Jain Education International (त) 1/1 सवि ( पुरिस) 1 / 1 (महियल) 7/1 (विरल) 1 / 1 वि अव्यय (एग ) 3 / 1 वि (मंति) 3 / 1 (भण) भूकृ 1 / 1 अव्यय (मन्न) विधि 2 / 2 सक अव्यय ( विवाय) 2 / 1 (भज्ज) व 1 / 1 सक (त) 3/2 स ( जंप ) भूक 1 / 1 (ज) 1 / 1 स [ ( रायहंस) 1 / 1 (व्व ( अ ) = समान ) ] [(गुण) - (दोस) - (परिक्खा) 2 / 1] (कर) संकृ [ ( पक्खवाय) - ( रहिअ ) 1 / 1 वि] (वाय) 2 / 1 (भंज ) व 3 / 1 सक (त) 6 / 1 स ( वयण ) 2 / 1 (क) 1/1 स अव्यय (मन्न) व 3 / 1 सक अव्यय (त) 3 / 1 स For Private & Personal Use Only वह पुरुष पृथ्वी पर दुर्लभ तब एक मंत्री के द्वारा कहा गया यदि मानो ( मानोगे ) तब विवाद हल करता हूँ (कर दूँगा ) उनके द्वारा कहा गया राजहंस के समान गुण-दोष की परीक्षा करके पक्षपातरहित विवाद को सुलझाता है उसकी बात को कौन नहीं मानता है ( मानेगा) तब उसके द्वारा प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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