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कूडवेसं
काऊण
रयणी
तत्थेव
ठिओ
अवसरं
लहिऊण
तं
अमयरसकूवयं
गिण्हिऊण
हत्थिणाउरे
आगओ
5.
तेण
पुण
ती
जणयादिसमक्खं
चिआमज्झे
अमयरसो
मुक्को
सा
सुमइकन्ना
सालंकारा
जीवंती
उट्ठिया
तया
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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[ ( कूड) - (वेस) 2 / 1] (काऊण) संकृ अनि
( रयणी) 7/1
[ ( तत्थ) + (एव)] तत्थ (क्रिविअ ) एव (अ)
(ठिअ) भूक 1 / 1 अनि
( अवसर ) 2 / 1
(लह) संकृ
(त) 2 / 1 सवि
[ ( अमय) - (रस) - (कूवय ) 2 / 1 ] (गिह) संकृ
(हत्थिणाउर) 7/1
(आगअ ) भूकृ 1 / 1 अनि
(त) 3 / 1स
अव्यय
(ती) 6 / 1 स
[ ( जणय) + (आदि) + (समक्खं)] [(जणय) - (आदि) - (समक्ख ) 1 / 1 ]
[(चिआ ) - (मज्झ ) 7/1]
[ ( अमय ) - (रस) 1 / 1 ]
(मुक्क) भूकृ 1 / 1 अनि
(ता) 1/1 सवि
[ ( सुमइ ) - ( कन्ना) 1 / 1]
[ ( स ) + ( अलंकारा) (स ) वि
( अलंकारा ) 1 / 1]
(जीव) वकृ 1/1
( उट्ठ) भूक 1 / 1
अव्यय
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कपटवेश
धारण करके
रात्रि में
वहाँ, ही
ठहरा
अवसर
पाकर
उस
अमृतरस के घड़े को
लेकर
हस्तिनापुर
आ गया
उसके द्वारा
फिर
उसके
पिता आदि के समक्ष
चिता के मध्य में
अमृतरस
छोड़ा गया
वह
सुमति कन्या
अलंकारसहित
जीती हुई
उठी
तब
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