________________
निग्गओ
जणणीए
उच्छंगे
नीओ
4.
तओ
सो
वरो
झायइ
अहो
अच्छरियं
•15
एवंविहजलणजलिओ
वि
जीविओ
जइ
एसो
अमयरसो
मह
हवइ
ता
अहमवि
21.
कन्नं
जीवावेमि
त्ति
चिंतिऊण
धुत्तत्तेण
310
Jain Education International
( निग्गअ ) भूकृ 1 / 1 अनि
( जणणी) 3 / 1
( उच्छंग) 7/1
(नी) भूक 1 / 1
अव्यय
(त) 1 / 1 सवि
(वर) 1 / 1
( झा - झाअ ) व 3 / 1 सक
अव्यय
(अच्छरिअ ) 1/1
अव्यय
( एवंविह ( अ ) = इस प्रकार ) -
[ ( जलण) - (जल) भूक 1 / 1 ]
अव्यय
(जीव) भूक 1/1
अव्यय
( एत) 1 / 1 सवि
[ ( अमय ) - (रस) 1 / 1]
(अम्ह) 4 / 1 स
( हव) व 3 / 1 अक
अव्यय
[(अहं)+(अवि)]
अहं ( अम्ह ) 1 / 1स अवि (अ)
(ता) 2 / 1 सवि
(कन्ना) 2 / 1
( जीव + आव) प्रे. व 1/1 सक
अव्यय
(चिंत) संकृ
( धुत्तत) 3 / 1
For Private & Personal Use Only
निकला
माता के द्वारा
गोद में
लिया गया
तब
वह
वर
सोचता है ( सोचा )
कि
आश्चर्य
कि
इस प्रकार अग्नि से जला हुआ
भी
जिया
यदि
यह
अमृतरस
मेरे लिए
होता है
तो
मैं, भी
उस
कन्या को
जिलाऊँगा
इस प्रकार
सोचकर
धूर्तता से
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
www.jainelibrary.org