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________________ रक्खंतो पइदिणं एगमन्नपिंड रक्षा करने हेतु प्रतिदिन एक अन्न पिण्ड को (रक्ख) वकृ 1/1 अव्यय [(एग)+ (अन्न)+(पिंड)] [(एग)-(अन्न)-(पिंड) 2/1] (मुअ) वकृ 1/1 (काल) 2/1 (गम) व 3/1 सक मुअंतो कालं छोड़ता हुआ काल बिताता है (बिताने लगा) गमेह 3. अव्यय अब अह तइओ (तइअ) 1/1 वि तीसरा नरो महीयलं भमन्तो कत्थवि मनुष्य पृथ्वी पर घूमता हुआ किसी ग्राम में पाकगृह में भोजन गामे रंधणघरम्मि भोअणं बनवाकर कराविऊण जिमिउं उवविट्ठो जीमने के लिए (नर) 1/1 (महीयल) 2/1 (भम) वकृ 1/1 अव्यय (गाम) 7/1 [(रंधण)-(घर) 7/1] (भोअण) 2/1 (कर+आव) प्रे. संकृ (जिम) हेकृ (उवविठ्ठ) भूकृ 1/1 अनि (त) 4/1 स (घर)-(सामिणी) 1/1 (परिवेस) व 3/1 सक अव्यय (ती) 6/1 स [(लहु) वि-(पुत्त) 1/1] अव्यय (रोअ) व 3/1 अक बैठा तस्स घरसामिणी परिवेसड़ उसके लिए घर स्वामिनी परोसती है (परोसा) तया तब उसका छोटा पुत्र तीए लहुपुत्तो अईव रोइइ अत्यन्त रोता है (रोया) 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137) प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 307 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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