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सुमति कन्या उसके
साथ
सुमइकन्ना तीए समं णिविडणेहेण एगो वरो
घनिष्ठ स्नेह के कारण
एक
वर
वि
पविट्ठो
प्रविष्ट हुआ
एक अस्थियों को गंगा के प्रवाह में डालने के लिए
अट्ठीणि गंगप्पवाहे खिविउं गओ एगो चिआरक्खं तत्थेव
गया
एक
[(सुमइ)-(कन्ना) 1/1] (ती) 3/1 स अव्यय [(णिविड) वि-(णेह) 3/1] (एग) 1/1 वि (वर) 1/1 अव्यय (पविठ्ठ) भूक 1/1 अनि (एग) 1/1 वि (अट्ठि) 2/2 [(गंग)-(प्पवाह) 7/1] (खिव) हेकृ (गअ) भूकृ 1/1 अनि (एग) 1/1 वि [(चिआ)- (रक्ख) 2/1] [(तत्थ)+(एव)] तत्थ (क्रिविअ), एव-अव्यय [(जल)-(पूर) 7/1] (खिव) संकृ (तदुक्ख) 3/1 [(मोह)-(महा)-(गह)-(गह) भूकृ 1/1] (महीयल) 7/1 (हिण्ड) व 3/1 सक (चउत्थ) 1/1 वि [(तत्थ) + (एव)] तत्थ (क्रिविअ), एव (अ) (ठिअ) भूकृ 1/1 अनि (त) 2/1 सवि (ठाण) 2/1
चिता की राख को वहाँ, ही
जलधारा में
डालकर
जलपूरे खिविऊण तदुक्खेण मोहमहागह-गहिओ
महीयले
उस दु:ख के कारण मोहरूपी महा-ग्रहों से पकड़ा हुआ पृथ्वी पर भ्रमण करता है (करने लगा) चौथा वहाँ, ही
हिण्डइ
चउत्थो तत्थेव
ठिओ
ठहरा
.
उस
ठाणं
स्थान की
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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