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________________ जओ क्योंकि मम सव्वण्णुधम्मपत्तीए छम्मासा मेरी सर्वज्ञ धर्म की प्राप्ति में अव्यय (अम्ह) 6/1 स [(सव्वष्णु)'-(धम्म)-(पत्ति) 7/1] (छम्मास) 1/1 अव्यय (जाय) भूकृ 1/1 अनि छः मास एव जाया अव्यय क्योंकि जओ इओ छम्मासाओ अव्यय (छम्मास) 5/1 इस लोक में छ: माह अव्यय कत्थ अव्यय कहीं अव्यय भी मरणपसंगे मृत्यु प्रसंग में अहं गई [(मरण)-(पसंग) 7/1] (अम्ह) 1/1 स (गया) भूकृ 1/1 अनि अव्यय (थी) 6/2 [(विविह)-(गुण)-(दोस)-(वट्टा) 1/1] (जाय) भूकृ 1/1 अनि गया तत्थ थीणं विविहगुणदोसवट्टा वहाँ स्त्री के विविध गुण दोषों की वार्ता जाया 8. एगाए वुड्ढाए उत्तं (एग) 3/1 वि (वुड्डा) 3/1 (उत्त) भूकृ 1/1 अनि (नारी) 6/2 (मज्झ) 7/1 (इम) 6/1 स [(पुत)-(वहू) 1/1] एक वृद्धा के द्वारा कहा गया स्त्रियों के मध्य में नारीण मज्झे इमीए इसकी पुत्तवहू पुत्रवधू 1. अपभ्रंश का शब्द है। पूर्व-पुव्वं (से पहले) का प्रयोग अपादान के साथ होता है। 2. प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 299 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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