SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 295
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पडिबोहि समझाने के लिए वह सा समयं मग्गेइ (पडिबोह) हेकृ (ता) 1/1 स (समय) 2/1 (मग्ग) व 3/1 सक समय/अवसर खोजती है (खोजने लगी) एगया तीए घर समणगुणगणालंकिओ महव्वइ नाणी जोव्वणत्थो साहू भिक्खत्थं समागओ अव्यय एक बार (ती) 6/1 स उसके (घर) 7/1 घर में [(समण)-(गुण)-(गण) + (आलंकिओ)] श्रमण-गुण-समूह [(समण)-(गुण)-(गण)-(आलंकिअ) से अलंकृत भूकृ 1/1 अनि] (महव्वइ) 1/1 वि महाव्रती (नाणि) 1/1 वि ज्ञानी [(जोव्वण)-(त्थ) 1/1 वि] यौवन में स्थित (एग) 1/1 वि एक (साहु) 1/1 साधु (भिक्खत्थं) क्रिविअ भिक्षा के लिए (समागअ) भूकृ 1/1 अनि आए (जोव्वण) 7/1 यौवन में अव्यय [(गहीय) भूक अनि-(वय) 2/1] ग्रहण किये हुए, व्रत को (संत) 2/1 वि (दंत) 2/1 वि जितेन्द्रिय (साहु) 2/1 साधु को (घर) 7/1 घर में (आगय) भूकृ 2/1 अनि आया हुआ (दह्रण) संकृ अनि देखकर (आहार) 7/1 आहार (विज्ज) वकृ 7/1 प्राप्त करते हुए होने पर अव्यय जोव्वणे वि गहीयवयं संतं साहुं घरंमि आगयं दह्रण आहारे विज्जमाणे 286 प्राकृत गद्य-पद्य सौर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy