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26.
पडिबोहिओ
य
भरहो
रामेणालिंगिओ
सिणेहेणं
सीयाए
लक्खणेण
य
बाढ
संभासिओ
विहिणा
27.
भरहो
नमियसरीरो
काऊण
सिरञ्जलिं
भाइ
रामं
रज्जं
करेहि
सुपुर
सयलं
आणागुणविसालं
28.
अहयं
धरेमि
छत्तं
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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(पडिबोहि) भूक 1/1
अव्यय
(भरह) 1 / 1
[ (रामेण ) + (आलिंगिओ ) ]
[ (राम) 3 / 1 ( आलिंगिअ ) 1 / 1 वि]
(सिणेह ) 3 / 1 क्रिविअ
( सीया) 3 / 1
( लक्खण) 3 / 1
अव्यय
अव्यय
(संभास) भूकृ 1/1
(विहि) 3 / 1 क्रिविअ
( भरह) 1 / 1
[ ( नमिय) वि - ( सरीर) 1 / 1]
(काऊण) संकृ अनि
[(सिर) + (अंजलि ) ] [ ( सिर) - ( अंजलि ) 2/1]
(भण) व 3 / 1 सक
(राम) 2 / 1
( रज्ज) 2 / 1
(कर) विधि 2 / 1 सक
(सुपुरिस) 8/1
(सयल) 2 / 1 वि
[ ( आणा ) - ( गुण) - (विसाल ) 2 / 1 वि]
( अम्ह) 1 / 1 स
(धर) व 1 / 1 सक
(छत्त) 2 / 1
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बोध दिया गया
पादपूर्ति
भरत
राम के द्वारा
आलिंगन किया गया
स्नेहपूर्वक
सीता के द्वारा
लक्ष्मण के द्वारा
और
अत्यन्त ( खूब सारी)
बातचीत की गई
क्रम से
भरत
झुके हुए शरीरवाला
करके
सिर पर अंजलि
कहता है
राम को
राज्य को
(पालन) करो (करें)
हे सुपुरुष !
सकल
आज्ञा गुण
समृद्ध
धारण करता हूँ (करूँगा )
छत्र
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