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________________ सीयाए (सीया) 3/1 सीता के समं अव्यय साथ पेच्छा देश (पेच्छ) व 3/1 सक देखता है भरहो (भरह) 1/1 भरत पासत्थवरधणुया [(पासत्थ) वि-(वर) वि पास में रखे हुए (धणुय) 2/2] उत्तम धनुष को 24. बहुयदिवसेसु [(बहुय) वि-(दिवस) 7/2] बहुत दिनों में देसो (देस) 1/1 जो (ज) 1/1 सवि वोलीणो (वोलीण) 1/1 वि पार किया कुमारसीहेहिं [(कुमार)-(सीह) 3/2] कुमार सिंहों के द्वारा सो (त) 1/1 सवि वह भरहेण (भरह) 3/1 भरत के द्वारा पवन्नो (पवन्न) भूकृ 1/1 अनि पाया गया दियहेहिं (दियह) 3/21 दिनों में छहि (छ) 3/2 वि छः अयत्तेणं (अ-यत्त) 3/1 क्रिविअ आसानी से 25. सो (त) 1/1 सवि चक्खुगोयराओ [(चक्खु)- (गोयर) 5/1] चक्षु से प्रत्यक्ष होने के कारण तुरयं (तुरय) 2/1 घोड़े को मोत्तूण (मोत्तूण) संकृ अनि छोड़कर केगईपुत्तो [(केगई)-(पुत्त) 1/1] कैकेयी पुत्र (चलण) 7/2 चरणों में पउमणाहं [(पउम)-(णाह) 2/1] राम को पणमिय (पणम) संकृ प्रणाम करके (मुच्छा ) 2/1 मूर्छा को समणुपत्तो (समणुपत्त) 1/1 वि सम्प्राप्त हुआ कभी-कभी तृतीया विभक्ति का प्रयोग सप्तमी विभक्ति के स्थान पर पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137) वह चलणेसु मुच्छ 268 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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