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________________ जंगल (में) को अडविं चिय (अडवी) 2/1 अव्यय (पारियत्त) 6/1 पारियत्तस्स पारियात्र के 8. पेच्छन्ति (पेच्छ) व 3/2 सक देखते हैं तत्थ अव्यय वहाँ भीमा बहुगाहसमाउला जलसमिद्धा गम्भीरा नाम (भीम) 2/2 वि भयंकर [(बहु) वि-(गाह)-(समाउल) 2/2 वि] बहुत मगरमच्छों से व्याप्त [(जल)-(समिद्ध) 2/2 वि] जल से समृद्ध (गम्भीरा) 2/2 गम्भीरा (नदी) अव्यय नामक (नदी) 2/2 नदी को [(कल्लोल)+ (उच्छलिय) तरंगों का समूह (संघाया)] [(कल्लोल)-(उच्छलिय)- उठा हुआ (है) (संघाय) 2/2 वि] नदी कल्लोलुच्छलियसंघाया अव्यय तब राघवेण भणिया राम के द्वारा कहे गये सुभट सुहडा सव्वे सब वि साहणसमग्गा तुम्हे नियत्तियव्वं एयं (राघव) 3/1 (भण) भूकृ 1/2 (सुहड) 1/2 (सव्व) 1/2 सवि अव्यय [(साहण)-(समग्ग) 1/2]] (तुम्ह) 3/1 स (नियत्त) विधिकृ 1/1 (एय) 1/1 सवि (रण्ण) 1/1 [(महा)-(भीम) 1/1] सैन्य से युक्त तुम्हारे द्वारा लौट जाना चाहिए यह रणं जंगल महाभीम अत्यन्त भयंकर 1. पवित्र नदी होने के कारण आदरार्थक बहुवचन का प्रयोग हुआ है। प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 261 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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