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________________ 10. ताएण भरहसामी ठविओ रज्जम्मि सयलपुहईए गच्छामि दाहिणपहं (ताअ) 3/1 [(भरह)-(सामी) 1/1] (ठव) भूकृ 1/1 (रज्ज) 7/1 [(सयल) वि-(पुहइ) 6/1] (गच्छ) व 1/1 सक (दाहिण)-(पह) 2/1 पिता के द्वारा भरत, स्वामी निश्चित किये गए राज्य में सकल पृथ्वी के जाता हूँ दक्षिण पथ को निश्चयपूर्वक तुम सब लौट जाओ अवस्स तुब्भे नियत्तेह अव्यय (तुम्ह) 1/2 स (नियत्त) विधि 2/2 अक 11. अह अव्यय वाक्यालंकार (त) 1/2 सवि भणन्ति कहते हैं सुहडा सामि सुभट हे स्वामी! तुमे विरहियाण किं अम्हं रज्जेण (भण) व 3/2 सक (सुहड) 1/2 (सामि) 8/1 (तुम्ह) 2/1 स (विरह) संकृ (किं) 1/1 स (अम्ह) 4/1 स (रज्ज) 3/1 (साहण) 3/1 वि अव्यय (विविह) 3/1 वि अव्यय [(देह)-(सोक्ख) 3/1] तुमको परित्याग करके क्या (प्रयोजन) हमारे लिए राज्य से सैन्य से साहणेण और विविहेण विविध य देहसोक्खेणं देहसुख से 1. यहाँ अनुस्वार का लोप हुआ है। 262 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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