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________________ सणियं अव्यय धीरे से अव्यय पादपूरक तत्थ अव्यय तब नरवसहा गाऊयमेत्तठाणं वच्चन्ति (नरवसह) 1/2 [(गाऊय)-(मेत्त)-(ठाण) 2/1] (वच्च) व 3/1 सक (सुहं) 2/1 क्रिवि [(बल)-(समग्ग) 1/2] राजकुमार मात्र दो कोस स्थान को जाते हैं सुखपूर्वक सेनासहित सुहं। बलसमग्गा 6. गाँवों में गामेसु पट्टणेसु पूइज्जन्ता जणेण बहुएणं पेच्छन्ति वच्चमाणा खेड-मडम्बाऽऽगरं (गाम) 7/2 (पट्टण) 7/2 अव्यय (पूअ) कर्म व 1/2 (जण) 3/1 (बहुअ) 3/1 वि (पेच्छ) व 3/1 सक (वच्च) वकृ 1/2 [(खेड)-(मडम्बा)-(ऽऽगर) 2/1] नगरों में और पूजे जाते हुए लोगों के द्वारा बहुत (लोगों) के द्वारा देखते हैं चलते हुए खेट, मडम्ब और आकार (युक्त) को पृथ्वी को वसुहं (वसुहा) 2/1 7. अह क्रम से अव्यय और (त) 1/2 सवि कमेण (कम) 3/1 क्रिविअ पत्ता (पत्त) भूकृ 1/2 अनि पहुँचे हरि-गय-रुरु-चमर- [(हरि)-(गय)-(रुरु)-(चमर)- सिंह, गज, रुरु, चमरीमृग सरहसद्दालं (सरह)-(सद्दाल) 2/1 वि] एवं शरभ से शब्दायमान घणपायवसंछन्नं [(घण)-(पायव)-(संछन्न) 2/1 वि] सघन वृक्षों से आच्छन्न कभी-कभी संज्ञा शब्द की द्वितीया विभक्ति का एकवचन रूप भी क्रिया विशेषण के रूप में प्रयुक्त होता है। संस्कृत व्याकरण, डॉ. प्रीतिप्रभा गोयल। 1. 260 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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