________________
जण
(जण) 2/1 (पलोय) वकृ 1/2
लोगों को देखते हुए
पलोयन्ता
3.
एयं
अव्यय
इस प्रकार
चिय
अव्यय
सुणमाणा पेच्छन्ता
(सुण) वकृ 1/2 (पेच्छ) वकृ 1/2 [(जण)-(वय) 6/1] (विणिओग) 2/1
सुनते हुए देखते हुए जनसमूह या जनपद के कार्य को
जणवयस्स
विणिओगं
अव्यय
अह निग्गया
पादपूरक (बाहर) निकले नगर से धीरे से
पुरीओ
(निग्गय) भूकृ 1/2 अनि (पुरी) 5/1 अव्यय (त) 1/2 सवि [(गूढ)-(दार) 3/1]
सणियं
गूढदारेणं
गुप्त द्वार से
अवरदिसं वच्चन्ता दिट्ठा सुहडेहि मग्गमाणेहि
[(अवर) वि-(दिसा) 2/1] (वच्च) वकृ 1/2 (दिट्ठ) भूकृ 1/2 अनि (सुहड) ३/2 (मग्ग) वकृ 3/2 (गन्तूण) संकृ अनि (पणम) भूकृ 1/2 (त) 1/2 सवि (भाव) 3/1 क्रिविअ [(स) वि-(सेन्न)-(सहिअ) 3/2 वि]
पश्चिम दिशा (को) में जाते हुए देख लिए गये सुभटों के द्वारा खोजते हुए (सुभटों) के द्वारा जाकर प्रणाम किये गये
गन्तूण पणमिया
ते
भावेण ससेन्नसहिएहिं
भावपूर्वक अपनी सेनासहित
5.
सीहा
(सीह) 1/2 [(सहाव)-(मन्थर)-(गइ) 3/1]
सहावमन्थरगईए
सिंह स्वभाव से मन्थर गति से युक्त
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
259
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org