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________________ पाठ-8 रामनिग्गमणं-भरहरज्जविहाणं अह पादपूरक तत्थ उस जिन विश्राम स्थल में जिणाययणे निदं गमिऊण अड्वरत्तम्मि लोगे सुत्तपसुत्ते अव्यय (त) 7/1 सवि [(जिन) + (आययणे)] [(जिण)-(आययण) 7/1] (निद्दा) 2/1 (गम) संकृ [(अड)-(रत्त) 7/1] (लोग) 7/1 [(सुत्त)-(पसुत्त) भूकृ 7/1 अनि] नींद भोगकर अर्द्धरात्रि में लोग (लोगों) के गहरी निद्रा में सोये हुए होने पर संचाररहित होने पर शब्दरहित होने पर नीसंचारे विगयसद्दे (नीसंचार) 7/1 वि [(विगय) भूकृ अनि-(सद्द) 7/1 वि] घेत्तुं लेकर धणुवररयणं सीयासहिया जिणं (घेत्तुं) संकृ अनि [(धणु)-(वर) वि-(रयण) 2/1] [(सीया)-(सहिय) 1/2 वि] (जिण) 2/1 (नमंस) संकृ अव्यय (विणिग्गय) भूकृ 1/2 अनि (त) 1/2 सवि (दो) 1/2 वि श्रेष्ठ धनुषरूपी रत्न को सीता के साथ जिन (भगवान) को नमन करके धीरे से निकल गये नमंसित्ता सणियं विणिग्गया ht ' दोनों अव्यय 258 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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