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________________ पूछता है दृढ़चित्त अव्यय जाणन्ति (जाण) व 3/2 सक जानते हैं 45. कोवं (कोव) 2/1 क्रोध को अव्यय तथा उवसमेउं (उवसम) संकृ शान्त करके पणमिय (पणम) संकृ प्रणाम करके पियरं (पियर) 2/1 पिता को परेण अव्यय अपेक्षाकृत अधिक विणएणं (विणय) 3/1 क्रिविअ विनयसहित आपुच्छइ (आपुच्छ) व 3/1 सक दढचित्तो [(दढ)-(चित्त) 1/1 वि] सोमित्ती (सोमित्ति) 1/1 लक्ष्मण अत्तणो (अत्तण) 4/1 अपनी जणणी (जणणी) 4/1 माता को 46. संभासिऊण (संभास) संकृ बातचीत करके भिच्चे (भिच्च) 7/1 भृत्यों के साथ वज्जावत्तं (वज्जावत्त) 2/1 वज्रावर्त अव्यय धणुवरं (धणुवर) 2/1 धनुष को (घेत्तुं) संकृ अनि लेकर धणपीइसंपउत्तो [(धण)-(पीइ)-(संपउत्त) 1/1 वि] अत्यन्त प्रेमयुक्त पउमसयासं [(पउम)-(सयास) 1/1] राम के पास समल्लीणो (समल्लीण) 1/1 लीन 47. पियरेण (पियर) 3/1 पिता बन्धवेहि (बन्धव) 3/2 बन्धुजन कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभिक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-135) और घेत्तुं प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 253 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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