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________________ 43. अव्यय अहवा रज्जधुरधुरं [(रज्ज)-(धुर)-(धर) 2/1 वि] अथवा राज्य के भार को धारण करनेवाले सब कुछ नाश करता हूँ आज सव्वं फेडेमि अज्ज भरहस्स' ठावेमि कुलाणीए (सव्व) 2/1 (फेड) व 1/1 सक अव्यय (भरह) 6/1 (ठा) व 3/1 प्रे सक [(कुल)+(आणीए)] [(कुल)-(आणीअ) भूक 7/1 अनि] (पुहइवइ) 2/1 (आसण) 7/1 (राम) 2/1 भरत का बैठाता हूँ कुल परम्परा से प्राप्त पुहइवई पृथ्वीपति को आसन पर आसणे राम राम को 44. एएण (एअ) 3/1 सवि किं अव्यय क्या मेरे आज अव्यय अथवा मज्झं (अम्ह) 6/1 स हवइ (हव) व 3/1 अक होता है वियारेण (वियार) 3/1 विचार से ववसिएणऽज्जं [(ववसिएण)+ (अज्जं)] गम्भीर, ववसिएण (ववसिअ) भूक 3/1 अनि अज्ज (अव्यय) नवरं अव्यय सिर्फ अव्यय फिर तच्चत्थं (तच्चत्थ) 2/1 सत्य को ताओ (ताअ) 1/1 पिता जेट्टो (जेट्ठ) 1/1 बड़े भाई कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134) पुण 1. 252 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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