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________________ दढनेहबन्धणं चिय विरागखग्गेण छिन्नं [(दढ)-(नेह)-(बन्धण) 1/1] अव्यय [(विराग)-(खग्ग) 3/1] (छिन्न) भूकृ 1/1 अनि (तुम्ह) 3/1 स स्नेह का दृढ़ बन्धन निश्चय (ही) वैराग्यरूपी तलवार से काट डाला गया आपके द्वारा 20. इस दुर्धरचर्या एसा दुद्धरचरिया उवइट्ठा जिणवरेहि सव्वेहिं (एता) 1/1 सवि [(दुद्धर)-(चरिया) 1/1] (उवइट्ठ-उवइट्ठा) भूकृ 1/1 अनि (जिणवर) 3/2 (सव्व) 3/2 उपदेश दिया गया जिनवरों द्वारा सभी कह अव्यय कैसे अज्ज अव्यय आज तक्खण (तक्खण) 1/1 तत्काल चिय अव्यय उप्पन्ना संजमे (उप्पन्न-उप्पन्ना) भूकृ 1/1 अनि (संजम) 7/1 (बुद्धि) 1/1 उत्पन्न हुई संयम में बुद्धि बुद्धी सुरपति के समान हे स्वामी! 21. सुरवइसमेसु सामिय निययं भोगेसु लालियं आपका भोगों में [(सुरवइ)-(सम) 7/2 वि] (सामिय) 8/1 (नियय) 1/1 वि (भोग) 7/2 (लालिय) भूक 1/1 अनि (देह) 1/1 [(खर)-(फरुस)(कक्कसयर) 2/2] पाला हुआ है शरीर देहं खर-फरूसकक्कसयरे अत्यन्त, तीव्र कठोर और कर्कश अव्यय कह अरिहसि (अरिह) व 2/1 सक समर्थ होते हो (होओगे) प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 241 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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