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________________ अहियं अधिक काऽवत्था (अहिय) 1/1 वि [(का)+ (अवत्था)] (का) 1/1 सवि अवत्था (अवत्था) 1/1 (बन्धव) 7/2 (भव) व 3/1 अक क्या, अवस्था बन्धवेसु बाँधवों के भवे होती है (होगी) 14. एक्कोऽत्थ अकेला यहाँ एस यह जीव जीवो दुहपायवसंकुले भवारणे [(एक्को )+(अत्थ)] एक्को (एक्क) 1/1 वि अत्थ (अव्यय) (एत) 1/1 सवि (जीव) 1/1 [(दुह)-(पायव)-(संकुल) 7/1 वि] [(भव)+आरण्णे)] [(भव)-(आरण्ण) 7/1] (भम) व 3/1 सक अव्यय [(मोह)+ (अन्धो)] [(मोह)-(अन्ध) 1/1] अव्यय दुःख एवं पाप से भरे हुए भवरूपी जंगल में घूमता है भमइ च्चिय मोहन्धो मोहान्ध पुणरवि फिर तत्थेव तत्थेव अव्यय जहाँ-तहाँ 15. तो अव्यय सव्वकलाकुसला इस प्रकार सब कलाओं में कुशल भरत को भरह नाऊण जानकर तत्थ [(सव्व)-(कला)(कुसल(स्त्री)कुसला) 1/1 वि] (भरह) 2/1 (ना) संकृ अव्यय (पडिबुद्ध) भूक 2/1 अनि [(सोग)-(समुत्थयं) वि(हियय) 5/1] (परिचिन्त) व 3/1 सक वहाँ पडिबुद्धं सोगसमुत्थयहियया परिचिन्तइ जागा हुआ शोक से आच्छादित हृदय से सोचती है 238 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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