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________________ सुदुल्लहं [(सु) (अ)-(अत्यन्त)-(दुल्लह) 1/1] अत्यन्त दुर्लभ [(सव्व)-(दाण) 7/2] सब दानों में सव्व-दाणेसु 29. उत्तम-णाण-पहाणो उत्तम-तवयरणकरण-सीलो उत्तम ज्ञान में प्रधान उत्तम तपस्या व चारित्र का पालन करनेवाला वि भी अप्पाणं [(उत्तम)-(णाण)-(पहाण) 1/1 वि] [(उत्तम)-(तवयरण)-(करण)(सील) 1/1 वि] अव्यय (अप्पाण) 2/1 (ज) 1/1 स (हील) व 3/1 सक [(मद्दव)-(रयण) 1/1] (भव) व 3/1 अक (त) 6/1 स जो हीलदि मद्दव-रयणं भवे स्वयं की जो निन्दा करता है मार्दवरूपी रत्न होता है उसके तस्स 30. जो चिंतेइ विचार करता है (ज) 1/1 स (चिंत) व 3/1 सक अव्यय (वंक) 2/1 वि वं नहीं कुटिल नहीं ण अव्यय कुणदि वंकं करता है कुटिल ण नहीं (कुण) व 3/1 सक (वंक) 2/1 वि अव्यय (जंप) व 3/1 सक (वंक) 2/1 वि अव्यय जंपदे वं करता है कुटिल नहीं ण अव्यय गोवदि णिय-दोसं (गोव) व 3/1 सक [(णिय) वि-(दोस) 2/1] और छिपाता है अपना दोष 1. पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 676 228 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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