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________________ मनुष्यगति में मणुव-गईए महव्वदं सयलं मणुव-गदीए झाणं मणुव-गदीए महाव्रत समस्त मनुष्यगति में [(मणुव)-(गइ) 7/1] (महव्वद) 1/1 (सयल) 1/1 वि [(मणुव)-(गदि) 7/1] (झाण) 1/1 [(मणुव)-(गदि) 7/1] अव्यय (णिव्वाण) 1/1 ध्यान मनुष्यगति में वि ही णिव्वाणं मोक्ष अव्यय इस प्रकार 27. इय दुलहं मणुयत्तं लहिऊणं दुर्लभ मनुष्यत्व को पाकर रमंति (दुलह) 2/1 वि (मणुयत्त) 2/1 (लह) संकृ (ज) 1/2 स (रम) व 3/2 अक (विसय) 7/2 (त) 1/2 स (लह) संकृ [(दिव्व) वि-(रयण) 2/1] [(भूइ)-(णिमित्त) 1/1] | (पजाल) व 3/2 सक रमते हैं विषयों में विसएसु लहिय दिव्व-रयणं पाकर दिव्यरत्न को भस्म के हेतु जलाते हैं भूइ-णिमित्तं पजालंति 28. भोयण-दाणं सोक्खं ओसह-दाणेण सत्थ-दाणं भोजनदान सुख (को) औषधदान के (साथ) [(भोयण)-(दाण) 1/1] (सोक्ख) 2/1 [(ओसह)-(दाण) 3/1] [(सत्थ)-(दाण) 1/1] अव्यय (जीव) 4/2 [(अभय)-(दाण) 1/1] शास्त्रदान और जीवों के लिए जीवाण अभय-दाणं अभयदान प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 227 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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