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________________ तच्चं विरला भावहि ' तच्चं " विरलाणं धारणा होदि 25. तच्चं कहिज्जमाणं णिच्चल-भावेण गिण्हदे जो 15 24. mp हि तं चिय भावेदि सया सो वि य तच्चं वियाणेइ 26. मणुव-गईए वि तओ 1. 2. 226 ( तच्च) 2 / 1 (विरल) 1 / 2 वि (भाव) व 3 / 2 सक ( तच्च) 2 / 1 (विरल) 6/2 ( धारणा ) 1 / 1 (हो) व 3 / 1 अक Jain Education International (त) 1 / 1 स अव्यय अव्यय ( तच्च) 2/1 (वियाण) व 3 / 1 सक [ ( मणुव) - (गइ) 7 / 1 ] अव्यय (737) 1/1 तत्त्व को विरले चिन्तन करते हैं ( तच्च) 2 / 1 तत्त्व को कहे जाते हुए ( कह + इज्ज+माण) वकृ कर्म 2/1 [ ( णिच्चल) वि - (भाव) 3 / 1 क्रिविअ ] निश्चल भाव पूर्वक (गिण्ह) व 3 / 1 सक ग्रहण करता है (ज) 1 / 1 स जो अव्यय (त) 2 / 1 स अव्यय (भाव) व 3 / 1 सक अव्यय तत्त्व में विरलों की For Private & Personal Use Only धारणा होती है और उसको tic चिन्तन करता है सदा वह ही पादपूरक तत्त्व को जानता है अपभ्रंश का प्रत्यय है। देखें, श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 206 कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137) मनुष्यगति में ही तप प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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