________________
वि
होदि
भिच्चो
भिच्चो
वि
य
होदि
रणाहो
17.
सारीरिय- दुक्खादो मास - दुक्खं
हवे
अइ-पउरं
माणस - दुक्ख जुदस्स
हि
विसया
वि
दुहावहा
हुंति
18.
एवं
सु
असारे
संसारे
दुक्ख - सायरे
घोरे
किं
कत्थ वि
अत्थि
222
Jain Education International
अव्यय
(हो) व 3 / 1 अक
( भिच्च) 1/1
(fired) 1/1
अव्यय
अव्यय
(हो) व 3 / 1 अक
( णरणाह) 1 / 1
[ ( सारीरिय) वि- (दुक्ख ) 5 / 1 ]
[ ( माणस ) वि - (दुक्ख ) 1 / 1 ]
( हव) व 3 / 1 अक
[(अइ) अ=अति- (पउर) 1 / 1 वि] [ ( माणस) वि- ( दुक्ख ) - (जुद ) 4 / 1 ]
अव्यय
( विसय) 1/2
अव्य
(दुहावह) 1/2 वि
(हु) व 3/2 अक
अव्यय
अव्यय
(असार) 7 / 1 वि
(संसार) 7/1
[ ( दुक्ख ) - ( सायर) 7/1]
वि
(घोर) 7 / 1
(किं) 1 / 1 स
अव्यय
(अस) व 3 / 1 अक
For Private & Personal Use Only
भी
हो जाता है
सेवक
सेवक
भी
और
हो जाता है
राजा
शारीरिक दुःख से
मानसिक दुःख
होता है
बहुत बड़ा
मानसिक दुःख से के लिए
क्योंकि
विषय
भी
दुःखदायक
होते हैं
इस प्रकार
अत्यन्त
असार
संसार में
दुःख
घोर
क्या
कहीं भी
है
सागर में
युक्त
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
www.jainelibrary.org