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________________ एवं अव्यय इस प्रकार जो जानकर जाणित्ता विहलिय-लोयाण धम्म-जुत्ताणं णिरवेक्खो (ज) 1/1 सवि (जाण) संकृ [(विहलिय) वि-(लोय) 4/2] [(धम्म)-(जुत्त) 4/2 वि] (णिरवेक्ख) 1/1 (त) 2/1 स (दा) व 3/1 सक दुःखी व्यक्तियों के लिए धर्म से युक्त बिना अपेक्षा उसको देता है निश्चय ही देदि nes अव्यय तस्स हवे जीवियं उसका होता है (त) 6/1 स (हव) व 3/1 अक (जीविय) 1/1 (सहल) 1/1 वि जीवन सहलं सफल 10. जल-बुब्बुय-सारिच्छं धण-जोव्वण-जीवियं पि पेच्छंता मण्णंति [(जल)-(बुब्बुय)-(सारिच्छ) 2/1 वि] जल के बुलबुले के समान [(धण)-(जोव्वण)-(जीविय) 2/1] धन, यौवन और जीवन को अव्यय भी (पेच्छ) वकृ 1/2 देखते हुए (मण्ण) व 3/2 सक मानते हैं अव्यय इस कारण से अव्यय (णिच्च) 2/1 वि [(अइ (अ)= अति-(बलिअ) 1/1] बड़ा (अति) बलवान [(मोह)-(माहप्प) 1/1] मोह का प्रभाव तो वि णिच्चं नित्य अइ-बलिओ मोह-माहप्पो 11. सीहस्स कमे (सीह) 6/1 (कम) 7/1 शेर के पंजे में 1. पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 676 218 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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