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________________ पडिदं सारंग जह ण रक्खदे को वि तह मिच्चुणा य गहिदं जीवं पि ण रक्खदे को वि 12. अइ-बलिओ वि उद्दो मरण- विहीणो ण दीस को वि रक्खिज्जतो वि सया रक्ख- पयारेहिं विविहेहिं प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International (पड - पडिद) भूकृ 2/1 (सारंग) 2 / 1 अव्यय अव्यय ( रक्ख) व 3 / 1 सक अव्यय अव्यय (मिच्चु ) 3/1 अव्यय (गह - गहिद) भूक 2/1 (जीव ) 2 / 1 अव्यय अव्यय ( रक्ख) व 3 / 1 सक अव्यय [ ( अइ (अ) = अत्यन्त ) - (बलिअ ) 1/1 fa] अव्यय ( रउद्द) 1 / 1 वि [ ( मरण) - ( विहीण ) 1 / 1 वि] अव्यय ( दीसदे) व कर्म 3 / 1 सक अनि (क) 1 / 1 स अव्यय ( रक्ख) वकृ कर्म 1 / 1 अव्यय अव्यय [ ( रक्ख) - ( पयार ) 3/2] (fafas) 3/2 For Private & Personal Use Only फँसे हुए हिरन को जिस प्रकार नहीं बचा सकता है कोई भी उसी प्रकार के मृत्यु पादपूर्ति के लिए पकड़े हुए जीव को भी नहीं बचा सकता है कोई भी द्वारा अत्यन्त, बलशाली भी भयानक से विहीन मृत्यु नहीं देखा जाता है कोई भी रक्षा किए जाते हु भी सदा रक्षा के उपायों से अनेक 219 www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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