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पुण
किन्तु
लच्छिं संचदि
अव्यय (लच्छी ) 2/1 (संच) व 3/1 सक अव्यय
लक्ष्मी का (को) संचय करता है
अव्यय
(भुंज) व 3/1 सक
भुंजदि णेय
अव्यय
भोगता है न ही देता है पात्रों में
पत्तेसु सो
वह
(दा) व 3/1 सक (पत्त) 7/2 (त) 1/1 स (अप्पाण) 2/1 (वंच) व 3/1 सक (मणुयत्त) 1/1 वि (णिप्फल) 1/1 (त) 6/1 स
अप्पाणं वंचदि मणुयत्तं णिप्फलं
स्वयं को ठगता है
मनुष्यत्व निरर्थक
उसका
8.
बढ़ती हुई लक्ष्मी को सर्वदा देता है धर्म के कामों में
सो
वह पण्डितों के द्वारा
पंडिएहिँ
प्रशंसा की जाती है
..irkel
(ज) 1/1 स वड्डमाण-लच्छिं
[(वड्ढ) वकृ-(लच्छी ) 2/1] अणवरयं
(अणवरय) 1/1 देदि
(दा) व 3/1 सक धम्म-कज्जेसु
[(धम्म)-(कज्ज) 7/2] (त) 1/1 स
(पंडिअ) 3/2 वि थुव्वदि
(थुव्वदि) व कर्म 3/1 सक अनि
(त) 6/1 स वि
अव्यय सहला
(सहला) 1/1 वि
(हव) व 3/1 अक लच्छी
(लच्छी ) 1/1 1. पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 676 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
उसकी
भी
सफल होती है लक्ष्मी
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