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5.
अइलालिओ
वि देहो
हाण - सुगंधेहिँ
विविह-भक्खेहिं
खणमित्तेण
वि
विहडइ
जल-भरिओ
आम-घडओ
18
व्व
6.
E
भुंजिज्ज
लच्छी
दिज्जउ
दाणे
दया-पहाणेण
जा
जल - तरंग - चवला
दो
तिण्णि
दिणाइ'
चिट्ठेइ
7.
जो
1.
216
[ ( अइ = अव्यय) - (लालिय) भूक 1/1 अनि ]
[वि ( अ ) = भी (देह) 1 / 1]
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[ ( ण्हाण ) - ( सुगंध ) 3/2]
[ ( विविह) - (भक्ख ) 3/2]
(खणमित्त) क्रिविअ
अव्यय
(विहड ) व 3 / 1 अक
[(जल) - (भरिअ) 1/1 वि] [(आम) वि - (घडअ ) 1 / 1 ] 'अ' स्वार्थिक अव्यय
अव्यय
(ता) 1 / 1 सवि
(भुंज + इज्ज) विधि कर्म 3 / 1 सक
( लच्छी) 1/1
( दिज्जउ ) विधि कर्म 3/1 सक अनि (दाण) 7/1
[ (दया) - ( पहाण) 3 / 1 वि]
(जा) 1 / 1 सवि
[(जल) - (तरंग) - (चवला) 1 / 1 वि]
(दो) 1/2 वि
(ति) 1 / 2 वि
(दिण) 1/2
(चिट्ठ) व 3 / 1 अक
(ज) 1/1 स
पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 516
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अत्यधिक, स्नेहपूर्वक लालन-पालन किया गया
शरीर भी
सुगन्धित द्रव्यों के स्नान से
अनेक प्रकार के भोजन से
क्षणमात्र में
ही
नष्ट हो जाता है
जल से भरे हुए
कच्चे घड़े
की तरह
वह
भोगी जावे
(भोगी जानी चाहिए)
लक्ष्मी
दी जानी चाहिए
दान में
उत्तम दया से
जो
जल तरंगों के समान चंचल
दो
तीन
दिन
ठहरती है
合
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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