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य
णाणस्स '
य
णत्थि
विरोहो
बुधे
णिद्दिट्ठो
नवरि
य
सीलेण
विणा
विसया
णाणं
विणासंति
34.
वायरणछंदवइसेसियववहारणायसत्थेसु'
वेदेऊण
सुदेसु
य
तेव
सुयं
उत्तमं
सीलं
अव्यय
( णाण) 6/1
अव्यय
अव्यय
(farta) 1/1
(बुध) 3 / 2 वि
( णिद्दिट्ठ) भूक 1 / 1 अनि
अव्यय
अव्यय
(सील) 3 / 1
अव्यय
(विसय) 1/2
( णाण) 2 / 1
(विणास ) व 3 / 1 सक
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[ ( वायरण) - (छंद) - ( वइसेसिय) - (ववहार) - ( णाय) - ( सत्थ) 7 / 2 ]
(वेद) संकृ
(सुद) 7/2
अव्यय
[(ते) + (एव) ]
त (तुम्ह) 4 / 1 सवि एव (अव्यय) (सुय) भूकृ 1 / 1 अनि
(उत्तम) 1 / 1 वि
(सील) 1 / 1
और
ज्ञान में
दोबारा प्रयोग
नहीं
विरोध
विद्वानों द्वारा
बतलाया गया
केवल
किन्तु
शील के
बिना
विषय
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ज्ञान को
नष्ट कर देते हैं
व्याकरण, छन्द, वैशेषिक
न्याय प्रशासन, न्याय शास्त्रों को
जानकर
आगमों को
1. कभी - कभी 'और' अर्थ को प्रकट करने के लिए 'य' का प्रयोग दो बार किया जाता है।
2. कभी - कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण
और
तुम्हारे लिए, ही
कहा गया
उत्तम
शील
3-134)
3. 'विणा' के योग में द्वितीया, तृतीया या पंचमी विभक्ति होती है।
4. कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-135)
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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