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दुक्खे
दुःखों में और
1.1.
सुहएसु
सुखों में
तथा
(दुक्ख) 2/2 अव्यय (सुह) 'अ' स्वार्थिक प्रत्यय 7/2 अव्यय (सत्तु) 6/2 अव्यय (बंधु) 6/2 (चारित्त) 1/1 (समभाव) पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय
सत्तूणं चेव बंधूणं चारित्तं समभावदो
शत्रुओं में
और मित्रों में
चारित्र समभाव से
32. धम्मेण
धर्म के कारण
होइ
होता है
लिंगं
वेश
ण
1.1.1111:11
लिंगमत्तण धम्मसंपत्ती जाणेहि भावधम्म किं
(धम्म) 3/1 (हो) व 3/1 अक (लिंग) 1/1 अव्यय [(लिंग)-(मत्त) 3/1] [(धम्म)-(संपत्ति) 1/1] (जाण) आज्ञा 2/1 सक [(भाव)-(धम्म) 2/1] (किं) 1/1 सवि (त) 4/1 सवि (लिंग) 3/1 (का) विधिकृ 1/1
नहीं वेश मात्र से धर्म की प्राप्ति समझो भाव-धर्म को
क्या
लिंगेण
तुम्हारे लिए वेश से किया जायेगा (किया जाना चाहिए)
कायव्वो'
33. सीलस्स
(सील) 6/1
शील में
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137) कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134) यहाँ विधि का प्रयोग भविष्य अर्थ में हुआ है।
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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