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वि
किं
कीर
किं
वा
सुणिएण
भावरहिएण
भावो
कारणभूदो सायारणयारभूदाणं
17.
बाहिरसंगच्चाओ
गिरिसरिदरिकंदराइ
आवासो
सयलो
झाणज्झयणो
णिरत्थओ
भावरहियाणं
18.
भंजसु
इंदियसेणं
भंजसु
मणमक्कड
पयत्तेण
मा
जणरंजणकरणं
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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अव्यय
(किं) 1/1 सवि
(कीरइ) व कर्म 3 / 1 सक अनि
( किं) 1 / 1 सवि
अव्यय
(सुण) भूक 3 / 1
[ ( भाव ) - ( रहिअ ) 3 / 1 वि]
(भाव) 1 / 1
[ ( कारण ) - (भूद) 1 / 1 वि]
[(सायार) + (अणयार) + (भूदाणं)] [ ( सायार) वि - ( अणयार) वि(भूद) 6 / 2 वि]
[ ( बाहिर) वि - ( संग ) - (च्चाअ) 1 / 1 ] [(गिरि) - (सरि) - (दरि) - (कंदरा) 7/1]
(आवास) 1/1
(सयल) 1 / 1 वि
[ ( झाण) + (अज्झयणो ) ]
[ ( झाण) - ( अज्झयण) 1 / 1 ]
( णिरत्थअ) 1 / 1 वि
[(भाव) - (रहिय) 4 / 2 वि]
(भंज) विधि 2 / 1 सक
[ ( इंदिय) - ( सेणा ) 2 / 1]
(भंज ) विधि 2 / 1सक
[ (मण) - (मक्कड) 2/1]
(क्रिविअ )
अव्यय
[(जण) - (रंजण) - (करण) 2 / 1]
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भी
क्या
प्राप्त किया जाता है
क्या
अथवा
सुना हुआ होने से
भाव-रहित
भाव
आधार बना हुआ
गृहस्थ, साधु होने वालों का
बाह्य परिग्रह का त्याग
पर्वत, नदी, गुफा और
घाटी में
रहना
सकल
ध्यान और अध्ययन
निरर्थक
भाव रहित के लिए
छिन्न-भिन्न करो
इन्द्रियरूपी सेना को
छिन्न-भिन्न करो
मनरूपी बन्दर को
प्रयत्नपूर्वक
मत
जन-समुदाय को खुश करने के साधन
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