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________________ बाहिरवयवेस बाह्य व्रतरूपी वेश को [(बाहिर) वि- (वय)-(वेस) मूलशब्द 2/1] (तुम्ह) 1/2 सवि (कुण) विधि 2/1 सक कुणसु धारण करो 19. जह दीवो गब्भहरे मारुयबाहाविवज्जिओ जलइ तह अव्यय जिस प्रकार (दीव) 1/1 दीपक (गब्भहर) 7/1 घर के भीतर के कमरे में [(मारुय)-(बाहा)-(विवज्जिअ) 1/1 वि] हवा की बाधा से रहित (जल) व 3/1 अक जलता है अव्यय उसी प्रकार [(राय) + (अनिल) + (रहिओ)](राय)- रागरूपी हवा से रहित (अनिल)-(रहिअ) 1/1 वि] [(झाण)-(पईव) 1/1] ध्यानरूपी दीपक अव्यय (पज्जल) व 3/1 अक जलता है रायानिलरहिओ झाणपईवो वि पज्जलइ 20. उत्थरइ (उत्थर) व 3/1 अक आच्छादन करती है (पकड़ती है) अव्यय जब तक नहीं ओ अव्यय (जर) 1/1वि अपभ्रंश वृद्ध (अवस्था) अव्यय सम्बोधन [(रोय)+ (अग्गी)][(रोय)-(अग्गि) 1/1] रोगरूपी, अग्नि अव्यय जब तक रोयग्गी जा ण अव्यय नहीं डहइ देहउडिं (डह) व 3/1 सक (देह)-(उडि) 2/1 [(इंदिय)-(बल) 1/1] जलाती है देहरूपी, कुटिया को इन्द्रियों की शक्ति इंदियबलं अव्यय नहीं 206 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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