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जिणउवइटुं
[(जिण)-(उवइट्ठ) 1/1 वि] (क्रिविअ)
जितेन्द्रियों द्वारा प्रतिपादित सावधानीपूर्वक
पयत्तेण 14.
जो
(ज) 1/1 सवि
जीवो
जीव
चिन्तन करता हुआ.
भांवतो जीवसहावं सुभावसंजुत्तो
आत्म-स्वभाव का
श्रेष्ठ,
(जीव) 1/1 (भाव) वकृ 1/1 [(जीव)-(सहाव) 2/1] [(सु) अ= श्रेष्ठ(भाव)-(संजुत्त) 1/1 वि] (त) 1/1 सवि [(जर)-(मरण)-(विणास) 2/1] (कुण) व 3/1 सक
भावों से युक्त
सो
वह
जरमरणविणासं
कुणइ फुडं
अव्यय
बुढ़ापा और मृत्यु का नाश करता है निश्चय ही प्राप्त करता है परम शान्ति को
लहइ णिव्वाणं
(लह) व 3/1 सक (णिव्वाण) 2/1
15. अरसमरूवगंधं
रस रहित, रूप रहित गन्ध रहित
अव्वत्तं चेयणागुणमसहं
अदृश्यमान चेतना, स्वभाव शब्द रहित
[(अरसं)+(अरूवं)+ (अगंध)] अरसं (अरस) 1/1 वि अरूवं (अरूव) 1/1 वि अगंधं (अगंध) 1/1 वि (अव्वत्त) 1/1 वि [(चेयणा)+ (गुणं)+ (असई)]] [(चेयणा)-(गुण) 1/1 वि] असदं (असद्द) 1/1 वि [(जाणं) + (अलिंग)+(गहणं)] जाणं (जाण) 1/1 [(अलिंग) वि(ग्गहण) 1/1] [(जीव) + (अणिघि8) + (संठाणं)] जीवं (जीव) 1/1 [(अणिद्दिट्ठ) वि-(संठाणं) 1/1]
जाणमलिंगग्गहणं
ज्ञान, बिना किसी चिह्न के ग्रहण
जीवमणिहिट्ठसंठाणं
आत्मा, अप्रतिपादित आकार
16.
पढिएण
(पढ) भूक 3/1
पढ़े जाने से
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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