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________________ वि अव्यय अन्नं (अन्न) 2/1 अव्यय (पत्थ) व 3/2 सक दूसरे से नहीं याचना करते हैं पत्थंति 47. तुंगो ऊँचा च्चिय होता है 61.#111.1let (तुंग) 1/1 वि अव्यय (हो) व 3/1 अक (मण) 1/1 (मणंसि) 6/1 (अंतिम) 7/2 वि अव्यय होइ मणो मणसिणो अंतिमासु वि मन प्रज्ञावान का अन्तिम (दशाओं) में दसासु अत्यंतस्स दशाओं में अस्त होते हुए की वि भी रइणो (दसा)7/2 (अत्थ) वकृ 6/1 अव्यय (रइ) 6/1 (किरण) 1/2 (क्रिविअ) अव्यय (फुर) व 3/2 अक किरणा सूर्य की किरणें ऊपर की ओर उद्धं चिय फुरंति प्रकट होती हैं 48. ता अव्यय तब तक ऊँचा तुंगो मेरुगिरी मयरहरो मेरु पर्वत समुद्र (तुंग) 1/1 वि (मेरुगिरि) 1/1 (मयरहर) 1/1 अव्यय (हो) व 3/1 अक (दुत्तार) 1/1 वि ताव होड़ तब तक होता है दुर्लंघ्य दुत्तारो 'याचना' अर्थ की क्रिया के साथ द्वितीया विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 195 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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