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________________ *15 विढप्पइ खलचलणं' तिहुयणं पि किं तेण माणेण *15 जं विढप्पड़ तणं पि तं निव्वुई कुणइ 46. ते धन्ना ताण नमो' ते गरुया माणिणो थिरारंभा जे गरुयवसणपडिपेल्लिया 1. 2. 194 (ज) 1 / 1 सवि (विढप्पर) व कर्म 3 / 1 सक अनि [ (खल) - (चलण) 2 / 1] (तिहुयण) 1/1 Jain Education International अव्यय (किं) 1 / 1 सवि (त) 3 / 1 स ( माण ) 3 / 1 (ज) 1 / 1 सवि (विढप्पइ) व कर्म 3 / 1 सक अनि (तण) 1 / 1 अव्यय (त) 1 / 1 स (निव्वुइ) 2/1 (कुण) व 3 / 1 सक (त) 1/2 स (धन्न) 1/2 वि (त) 4/2 स अव्यय (त) 1/2 स (गरुय) 1 / 2 वि (माणि) 1 / 2 वि [(थिर) + (आरंभा ) ] [(थिर) वि- ( आरम्भ ) 1/2] (ज) 1/2 सवि जो उपार्जित किया जाता है खल - चरण में त्रिभुवन भी For Private & Personal Use Only क्या उससे सम्मान से जो उपार्जित किया जाता है 即 तृण भी वह सुख उत्पन्न करता है जो बड़ी विपत्ति से अति [ (गरुय) - (वसण) - (पडिपेल्ल) भूकृ 1/2] पीड़ित कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137) 'नमो' के योग में चतुर्थी होती है। वे धन्य हैं उनके लिए नमस्कार वे महान आत्म-सम्मानी स्थिर प्रयत्न प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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