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________________ जि अव्यय कि क्षमा करता है खमेइ समत्थो धणवंतो (खम) व 3/1 सक (समत्थ) 1/1 वि (धणवंत) 1/1 वि समर्थ धनवान अव्यय कि गव्वमुव्वहइ अव्यय नहीं [(गव्वं)+ (उव्वहइ)] गव्वं (गव्व) 2/1 गर्व, धारण करता है उव्वहइ (उव्वह) व 3/1 सक अव्यय कि अव्यय और विद्यायुक्त नम्र सविज्जो नमिरो तिसु' तेसु अलंकिया पुहवी (सविज्ज) 1/1 वि (नमिर) 1/1 वि (ति) 7/2 स (त) 7/2 स (अलंकिया) 1/1 वि (पुहवी) 1/1 तीनों के द्वारा उनके द्वारा अलंकृत पृथ्वी 38. इच्छा का (को) जो जो अणुवट्टइ मम्म अनुसरण करता है मर्म का (को) रक्षण करता है रक्खइ (छंद) 2/1 (ज) 1/1 सवि (अणुवट्ट) व 3/1 सक (मम्म) 2/1 (रक्ख) व 3/1 सक (गुण) 2/2 (पयास) व 3/1 सक (त) 1/1 स अव्यय (माणुस) 6/2 (देव) 6/2 गुणों को पयासेइ प्रकाशित करता है वह नवरि न केवल माणुसाणं मनुष्यों का देवताओं का देवाण 1. कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-135) 190 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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