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पेच्छंति
23.
एक्कं
चिय
सलहिज्जइ
दिसदियहाण
नवरि
निव्वहणं
आजम्म
एक्मेक्aहि
जेहि
विरहो
च्चिय
न
दिट्ठो
24.
पडिवन्नं
दिणयरवासराण
दोह
अखंडियं
सुहइ
सूरो
न
दिणेण '
विणा
वि
न
हु
1.
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
(पेच्छ) 3/2 सक
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(एक्क) 1 / 1 वि
अव्यय
( सलह ) व कर्म 3 / 1 सक
[ ( दिस) - ( दियह) 6/2]
अव्यय
(निव्वहण ) 1/1
अव्यय
( एक्कमेक्क) 3 / 2 वि
(ज) 3/2 स
(विरह) 1 / 1
अव्यय
अव्यय
(दिट्ठ) भूकृ 1 / 1 अनि
'बिना ' के योग में द्वितीया, तृतीया या पंचमी विभक्ति होती है ।
( पडिवन्न) भूकृ 1 / 1 अनि
[(दिणयर) - (वासर) 6/2] (a) 6/2 fa
( अ - खंड) भूकृ 1 / 1
(सुह) व 3 / 1 अक
(सूर) 1/1
अव्यय
( दिण ) 3 / 1
अव्यय
अव्यय
अव्यय
अव्यय
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देखते हैं
एक
ही
प्रशंसित किया जाता है
सूर्य और दिन का
केवल
निर्वाह
आजन्म
प्रत्येक के द्वारा
जिनमें से
विरह
ही
नहीं
देखा गया
की हुई
सूर्य और दिन की
दोनों की
अखण्डित
शोभती है
सूर्य
नहीं
दिन के
बिना
भी
नहीं
निश्चय ही
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