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च्चिय अउव्वो
19.
संतं
न
देंति
वारेंति
देतयं
दिन्नयं
पि
हारंति
अणिमित्तवइरियाणं
खलाण
मग्गो
च्चिय
अउव्वो
20.
जेहिं
चिय
उब्भविया
जाण
पसाएण
निग्गयपयावा
समरा
ति
विंझं
खलाण
मग्गो
च्चिय
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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अव्यय
(अउव्व) 1 / 1 वि
(संत) 2 / 1 वि
अव्यय
(दा) व 3 / 2 सक
(वार) व 3 / 2 सक
(दा) वकृ 2/1 'य' स्वार्थिक प्रत्यय
(दिन्न) 2 / 1 वि 'य' स्वार्थिक प्रत्यय
अव्यय
(हार) व 3 / 2 सक [(अणिमित्त)-(वइरिय) 6 / 2 वि]
(खल) 6/2
( मग्ग) 1 / 1
अव्यय
(अउव्व) 1 / 1 वि
(ज) 3 / 2 सवि
अव्यय
(उब्भव) भूकृ 1/2
(ज) 6/2 स
(पसाअ ) 3/1
[ ( निग्गय) भूक अनि - (पयाव ) 1/2 ]
(समर) 1 / 2
(डह) व 3 / 2 सक
(fast) 1/2
(खल) 6/2
( मग्ग) 1 / 1
अव्यय
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ही
अनोखा
होती हुई
नहीं
देते हैं
रोकते हैं
को
हु
ईको
भी
छीन लेते हैं
बिना किसी कारण वैर
करनेवाले
खलों का
मार्ग
ही
अनोखा
hc
जिनके द्वारा
ही
ऊँचे किए गये हैं
जिनके
प्रसाद से
बाहर फैलाया गया है, प्रताप
अनार्य
जाते हैं
विन्ध्य पर्वत को
खलों का
मार्ग
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