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अव्यय
नेय सिढिलंति
कभी नहीं शिथिल करते हैं
(सिढिल) व 3/2 सक
17. चंदणतरु
व्व
सुयणा फलरहिया जइ वि निम्मिया विहिणा तहवि कुणंति परत्थं निययसरीरेण लोयस्स
[(चंदण)-(तरु) 1/1]
चन्दन वृक्ष (आगे संयुक्त अक्षर (व्व) के आने से दीर्घ स्वर ह्रस्व हुआ है) अव्य
की तरह (सुयण) 1/2
सज्जन [(फल)-(रह) भूक 1/2]
फलरहित अव्यय
यद्यपि (निम्म) भूक 1/2
बनाए गए (विहि) 3/1
विधि के द्वारा अव्यय
तो भी (कुण) व 3/2 सक
करते हैं (परत्थ) 2/1
हित [(निय) वि 'य' स्वार्थिक-(सरीर) 3/1] निज शरीर से (लोय) 6/1
लोक का
18.
गुणिणो गुणेहि विहवेहि विहविणो होंतु गव्विया
गुणी गुणों से सम्पत्ति से सम्पत्तिशाली
(गुणि) 1/2 (गुण) 3/2 (विहव) 3/2 (विहवि) 1/2 (हो) विधि 3/2 अक (गव्विय) 1/2 वि अव्यय (दोस) 3/2
गर्वित
सम्भावना दोषों के कारण
दोसेहि
नवरि
अव्यय
गव्वो
केवल गर्व खलों का मार्ग
(गव्व) 1/1 (खल) 6/2 (मग्ग) 1/1
खलाण मग्गो
180
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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