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15.
ܩ
पुरिसा
धर
धरा
अहवा
दोहिं
पि
धारिया
धरणी
उवयारे
जस्स
मई
उवयरियं
जो
न
पम्हुसाइ
16.
सेला
चलंति
पलए
मज्जायं
सायरा
वि
मेल्लंति
सुयणा
हिं
पि
काले
पडिवन्नं
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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(a) 2/2 fa
(पुरिस) 2/2
(धर) व 3 / 1 सक
(ERT) 1/1
अव्यय
(दो) 3/2.वि
अव्यय
(धार) भूकृ 1 / 1
( धरणि) 1 / 1
(उवयार) 7/1
(ज) 6 / 1 सवि
(मइ) 1 / 1
(उवयर) भूक 2/1
(ज) 1 / 1 सवि
अव्यय
(पम्हुस ) व 3 / 1 सक
(सेल) 1/2
(चल) व 3 / 2 अक
( पलअ ) 7/1
( मज्जाय) 2 / 1
( सायर) 1/2
अव्यय
(मेल्ल) व 3 / 2 सक
(सुयण) 1/2
(त) 7 / 1 सवि
अव्यय
(काल) 7/1
( पडिवन्न) भूक 2 / 1 अनि
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दो
पुरुषों को
धारण करती है
पृथ्वी
अथवा
दो के द्वारा
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ही
धारी गई है
पृथ्वी
उपकार में
जिसकी
मति
किये गये उपकार को
जो
नहीं
भूलता है
पर्वत
नष्ट होते हैं
प्रलय में
मर्यादा
सागर
भी
छोड़ देते हैं
सज्जन
उस (में)
भी
समय में
दिये हुए वचन को
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